थके भारी बस्ते से कल शाम फिर बाहर कूदा आर्कमिडीज और दोहराने लगा अपना सिद्धांत आज सुबह एक बहुत अच्छी कविता पढ़ी थी मैंने जितने भर में छपी है कविता क्या उतना गंदा पानी छँटा होगा ?
हिंदी समय में हरीशचंद्र पांडे की रचनाएँ